Thursday, June 25, 2009

ruk

हर तरफ हर जगह
फुदकता
घुमता
कभी मचलता
कभी बस कुछ पल ठहरता
कभी हल्का सा
कभी बहुत थक कर
एक भारीपन से रुक जाता
थोडा सा समझता
बहुत कुछ पूछता
एक मंज़र एक राह ढूंढता
चल पड़ा है किस गली किस डगर
न जानता न कोई इससे पहचानता
अपने रास्ते खुद चुनने
निकल पड़ा है यह
कहीं मुझसे आगे न निकल जाए
मेरे मन्न.. एक पल तोह ठहर जा

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