श्याम की भीनी खुशबू जो आई, एक नज़र पड़ी अपने हाथों पे
धीरे धीरे उनके बीच से निकल के गिर रहे थे, सारे सपने, सारी आशाएं. हलके हलके, टपक टपक.
हाथ खोले तो देखा,उनके बीच में कुछ नहीं था,पन्ने की तरह साफ़, मुझको टाक रहे थे.
पुछा मैंने उस खुदा से
कहाँ गया सब?
कहाँ खो दिया मैंने उसे
क्यों नहीं है अब कुछ मेरे पास?
हँस के बोला वो
किस पे रोंती है तू?
तेरा कभी कुछ था ही कहाँ?
No comments:
Post a Comment