हर तरफ हर जगह
फुदकता
घुमता
कभी मचलता
कभी बस कुछ पल ठहरता
कभी हल्का सा
कभी बहुत थक कर
एक भारीपन से रुक जाता
थोडा सा समझता
बहुत कुछ पूछता
एक मंज़र एक राह ढूंढता
चल पड़ा है किस गली किस डगर
न जानता न कोई इससे पहचानता
अपने रास्ते खुद चुनने
निकल पड़ा है यह
कहीं मुझसे आगे न निकल जाए
मेरे मन्न.. एक पल तोह ठहर जा
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